पूर्वांचल लाइफ/अश्वनी तिवारी
हमारे समाज में जब किसी व्यक्ति की सरकारी नौकरी लगती है तो उसके घर वाले, रिश्तेदार और आस पड़ोस पता नहीं क्या–क्या उससे अपेक्षा कर लेते हैं। जिनकें पास सरकारी नौकरी नहीं है, वो पता नहीं क्या- क्या सपने पाले बैठे रहते हैं इस नौकरी से, कि सरकारी नौकरी मिलते ही वो क्या-क्या कर लेंगे। लेकिन जैसे ही नौकरी में आते हैं, जल्द ही उन्हें पता चल जाता है कि वो जितनी अपेक्षाएं करके आए थे, उनमें से बहुत-सी अपेक्षाएं शायद ही पूरी हों, इसलिए कुछ लोग तो जितना कर पाते हैं, उसमें संतोष कर लेते हैं, लेकिन बहुत से लोग अपनी अपेक्षाएं नहीं छोड़ पाते और गलत कदम उठाते हैं। कई बार तो गलत कदम अपने परिवार और पड़ोस, रिश्तेदार और मित्रों के कारण भी उठाते हैं। कई बार दिखावा करने के लिए भी गलत कदम उठाते हैं। बहुत बार ऐसा होता है कि लोग अपनी अपेक्षा और लोगों की अपेक्षा के तले इतना दब जाते हैं कि अपनी नैतिकता, शारीरिक और मानसिक स्वास्थ और अपनी इमेज सबको नष्ट कर देते हैं।
लेकिन मैं आपको बता दूं, सरकारी नौकरी चाहे जो हो अधिकारी की हो या अध्यापक की या कर्मचारी की या चतुर्थ श्रेणी की, नौकरी से आप केवल अपना, पत्नी और दो बच्चों का पेट भर सकते हैं, दो बच्चों को अच्छे शिक्षण संस्थान में पढ़ा सकते हैं,उनकी शादी कर सकते हैं, नौकरी के अंत तक एक छोटा सा घर बनवा सकते हैं, सबका स्वास्थ्य अच्छा रख सकते हैं, थोड़ा बहुत घूम सकते हैं, अपने माता-पिता की थोड़ी सेवा कर सकते हैं, कुछ सामाजिक – धार्मिक कार्य कर सकते हैं।इसके अलावा अगर आप ईमानदार हैं तो शायद ही कुछ कर पायेंगे। अगर आप इससे ज्यादा करने का प्रयास करेंगे तो या तो आपको गलत कार्य करना पड़ेगा या अतिरिक्त आय का स्रोत तलाशना होगा। इसलिए अगर आपको इससे ज्यादा करना हो तो नौकरी के बजाय स्टार्टअप शुरू कीजिए या कोई अच्छा व्यवसाय शुरू कीजिए या अन्य कोई कार्य कीजिए। अगर ये सब कुछ नहीं कर पाएंगे तो बहुत परेशान हो जाएंगे।
तात्पर्य यह है कि सरकारी नौकरी आपकी केवल सीमित आवश्यकताएं ही पूरी कर सकती है। अगर उस पर अपनी और अपने आसपास के लोगों की अनंत इच्छाएं पूरा करने का बोझ डालेंगे तो यह आपको गलत मार्ग पर भी ले जा सकता है, जिससे आपकी शारीरिक, मानसिक और नैतिक क्षति हो सकती है।
—डाॅ.प्रशांत त्रिवेदी
असि.प्रो. राजनीति विज्ञान, टीडीपीजी काॅलेज, जौनपुर,उ.प्र.।