युद्ध महाभारत सा……!

Share

किस्से कहानियों में सुना है,
किताबों में पढ़ा भी है….
कि कौरवों की ओर से…गुरू द्रोण ने
पाण्डवों पर….पाने को विजय….
रचा था…एक दिन चक्रव्यूह…!
जो करता कौरवों की रणविजय…
पर….यह प्रश्न अनुत्तरित आज भी है
कि क्यों रचा इसको उन्होंने…?
युद्ध शुरू होने के…बारह दिनों बाद..
मालूम था जबकि उन्हें….!
इसकी अभेद्य और अजेय औकात…
फिर इतने दिनों का इंतजार क्यों…?
कौरवों की जगह…गुरु द्रोण को…
पाण्डवों से प्यार क्यों….?
शायद उन्हें आभास था,
खुद की गलतियों का एहसास था,
अच्छाई किधर थी…बुराई किधर…!
इस पर भी थी…उनकी नजर….
शायद….मन से चाहते थे….
बने रहना…न्याय के पक्षधर….
इसी कारण सह रहे थे…सब प्रहार…
जबकि हो रही थी वहाँ…!
बाण वर्षा मूसलाधार….
सोच उनकी शायद इतनी सी रही
कि बचा रहे…न्याय का संसार…!
बचा रहे…न्याय का संसार….
मित्रों…आज का दौर तो देखो….
यहाँ हर रोज ही….!
हो रहा…एक नया युद्ध है….
सात द्वारों से अलग,
अनगिनत द्वारों का बना….
रंग-बिरंगा…पर….काँटों भरा….
अलग सा बना चक्रव्यूह है…..
तब तो…चार योद्धा जानते थे…
तोड़ना चक्रव्यूह के जाल को….
अब तो हाथ बाँधे…मौन हो…
देखने भर को….सब खड़े हैं…
इस व्यूह के मकड़जाल को….
देखता हूँ जब कभी….
ऊटपटाँग से….सब फँसे हैं….!
आज इसके मायाजाल में….
निज़ात भी किसी को ना मिल रही है
यहाँ इस व्यूह के जंजाल से…
क़ाबिले ग़ौर है एक बात और मित्रों
इंतजार भी नहीं है किसी को यहाँ…!
कि खेल जाए अंतिम दौर में….
निगल जाना चाहते हैं सभी,
आपका हिस्सा भी…एक ही कौर में
फर्क बस इतना सा रहा….!
तब मौत पर ही…हार और जीत थी..
आज बदल दी गई…परिभाषा यहाँ…
लोग चाहते हैं…बस यही…कि…
डर जाए उनसे….संसार का हर कोई
पर..इस ताप से उनके…मरे कोई नहीं
इसके अलावा….चाहते हैं सब यही…
कि युद्ध महाभारत सा….!
सतत चलता रहे….हरदम यहाँ….
चक्रव्यूह कोई नया….!
सृजित होता रहे हरदम यहाँ…..
चक्रव्यूह कोई नया….!
सृजित होता रहे हरदम यहाँ…..

रचनाकार….
जितेन्द्र कुमार दुबे
“अपर पुलिस उपायुक्त” लखनऊ

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!