जौनपुर: बतौर सूत्र अगले सत्र से साल में दो बार परीक्षा दे सकेंगे 10 वीं और 12वीं के छात्र, शिक्षा मंत्रालय ने मंजूरी दी है जिसके बाद ये माना जा रहा कि शिक्षा व्यवस्था बदलाव की ओर है। 10वीं या 12वीं में पढ़ने के लिए यह बेहद जरूरी है। 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षा को लेकर केंद्र सरकार ने एक बड़ा फैसला लिया किया है। जिसके मुताबिक अगले साल यानी 2025 से 10वीं और 12वीं की परीक्षा साल में दो बार होगी। शिक्षा मंत्रालय से अगले शैक्षणिक सत्र 2025-26 से 10वीं और 12वीं बोर्ड की परीक्षा को साल में दो बार कराने के लिए मंजूरी दे दी है। इस नए फैसले के अनुसार अब पहली परीक्षा अप्रैल और दूसरी परीक्षा फरवरी के महीने में आयोजित की जाएगी। नई एजुकेशन पॉलिसी के तहत केंद्र सरकार ने पिछले साल एजुकेशन सिस्टम में कई तरह के बदलाव करने का ऐलान किया था। साल 2024 के एकेडमिक सेशन के लिए इसमें किताबों के साथ ही नए सिलेबस वर्क फ्रेम भी शामिल है। नए सिलेबस में साल में 2 बार बोर्ड परीक्षा कराना भी शामिल है। इसके तहत जिस परीक्षा में बच्चा अच्छे नंबर लाएगा, उन्हीं नंबरों के आधार पर वह आगे की पढ़ाई कर सकेगा। जनपद के पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक पंकज सीबी मिश्रा ने कहा कि दरअसल साल में दो बार परीक्षा कराने के फैसले के पीछे सरकार की कोशिश कम उम्र में बच्चों में आने वाले तनाव को दूर करना है साथ ही शिक्षा व्यवस्था को और भी आसान बनाना है। शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने इस बारे में जानकारी देते हुए कहा कि बोर्ड के एग्जाम साल में दो बार यानी कि जेईई की तर्ज पर कराने को लेकर सहमति बनी है। उन्होंने कहा कि सरकार चाहती है कि इस नियम को बेहतर तरीके से अमल में लाया जाए, इसलिए अन्य बोर्डों के साथ सरकार इसको लेकर चर्चा कर रही है। 10वीं और 12वीं की बोर्ड की परीक्षा साल में दो बार कराने से बच्चों को काफी राहत मिलेगी। उनके अंदर परीक्षा को लेकर जो तनाव होता है वो खत्म होगा। इसके साथ ही उनका साल भी खराब होने से बचेगा। दरअसल अगर एक बार परीक्षा खराब हो जाती है तो बच्चे का साल भी खराब हो जाता है। ऐसे में उसे दोबारा से उसी क्लास में पढ़ना होता है। लेकिन सरकार के इस नए फैसले से अब छात्रों के पास साल में दो बार परीक्षा देने का ऑप्शन होगा। जिसके मुताबिक अगर किसी बच्चे की अप्रैल में परीक्षा खराब हो जाती है तो उसे दोबारा से परीक्षा के लिए साल भर का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। उसके पास फरवरी में परीक्षा देने का ऑप्शन होगा। केंद्र सरकार, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए ‘नई शिक्षा नीति’ लाई है। यह नीति भारत के 1.3 अरब नागरिकों की अपेक्षाओं और सपनों के साथ राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण को ध्यान में रखते हुए तैयार की गई है। नई शिक्षा नीति सांस्कृतिक जागरूकता सहानुभूति वैज्ञानिक उत्कृष्टता और जनोपयोगी दक्षता के उद्देश्य से चलाया गया एक ऐसा कार्यक्रम है जिससे न केवल राष्ट्र समुन्नत होगा बल्कि राष्ट्रीय चरित्र का भी विकास होगा। तीन दशकों से चली आ रही शिक्षा व्यवस्था में काफी काफी परिवर्तन किया गया है। डिग्री कोर्स आधारित नहीं बल्कि व्यक्ति की स्वयं की दक्षता आधारित शिक्षा ही राष्ट्र को सफल बना सकती है, इस उद्देश्य के साथ यह नई शिक्षा नीति लागू की गई है। शिक्षा केंद्र और राज्य के बीच समवर्ती सूची का विषय है, इसलिए प्रत्येक राज्य का भी दायित्व होगा कि केंद्र के साथ समग्र भाव से इसको लागू करें। कुछ राज्यों में स्कूली शिक्षा का प्राथमिक स्तर अन्य राज्यों से बहुत ही अच्छा है तो कुछ राज्य इस दिशा में अभी काफी पिछड़े हुए हैं। विशेष कर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान अपने सीमित संसाधनों के चलते किस प्रकार बहु विषयक शिक्षा और नवाचार को बढ़ाएंगे यह उनके सामने एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। हालांकि हाल ही में मध्य प्रदेश सरकार ने मेडिकल की पढ़ाई हिंदी में भी शुरू करने की घोषणा की है, जो नई शिक्षा नीति के सांस्कृतिक जागरूकता और स्वावलंबन की शुरुआत कही जा सकती है। तकनीकी और चिकित्सा संस्थानों द्वारा इस दिशा में बहुत तेजी से प्रयास किया जा रहा है, विशेष करके मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश इस दिशा में काफी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। इसे लागू करने में संसाधनों की कमी और शिक्षा से ही जुड़ा मिड डे मील, जिसके लिए कोई अतिरिक्त व्यक्ति नहीं है, कहीं न कहीं एक विरोधाभासी बात करता है। भारत में दुनिया के सर्वाधिक युवा और विद्यार्थी हैं। हमारे विद्यार्थी इस अमृत काल में अपनी शिक्षा-साधना स्वयं करें। अपने गुण, कर्म, स्वभाव के अनुकूल शिक्षा हासिल करें और समाज व राष्ट्र को बढ़ाएं, इस क्रम में कौशलपूर्ण शिक्षा ही अभिकरण बन सकती है। इस नीति में विशेषकर स्कूल शिक्षा और उच्च शिक्षा में बदलाव के लिए जो परिवर्तन सुझाए गए हैं, हो सकता है उनके प्रभाव तात्कालिक तौर पर इतने अच्छे नहीं हों, लेकिन निश्चित रूप से भविष्य में ये प्रभावकारी साबित होगी।। मदन मोहन मालवीय और ज्योतिबा फुले जिन परिकल्पना के साथ समाज को शिक्षित करना चाहते थे वह, इसी नई शिक्षा नीति का नवीन आरोपण था।
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