पूर्वांचल लाईफ/पंकज कुमार मिश्रा, पत्रकार एवं विश्लेषक जौनपुर
अचानक मंगलवार की रात्रि फेसबुक और इंस्टाग्राम सहित कई वेबसाइट्स करीब एक घंटे के लिए क्रैश हो गए, जिससे दुनिया भर में हंगामा मच गया। यूजर्स बेचैन और परेशान देखे गए। किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि आखिर हुआ क्या है, यह दर्शा रहा कि आप सोशल मिडिया पर कितने निर्भर हो चुके है। उधर इस पर एलन मस्क ने मेटा पर तंज कस दिया और कहा कि हमारे सर्वर तो काम कर रहे हैं। आपको बता दें कि मेटा के फेसबुक और इंस्टाग्राम मंगलवार को दुनिया भर में सैकड़ों हजारों यूजर्स के लिए अचानक से बंद हो गए। यूजर्स ऐप्स लोड करने, भेजने और फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सर्च को रीफ्रेश करने में असमर्थ दिखे। एक्सपर्ट और मिडिया विश्लेषक की माने तो आउटेज की वजह से यह दिक्कत आई। यूजर्स नें कहा कि वे अचानक मेटा के स्वामित्व वाले सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से लॉग आउट हो गए। वैसे मैं सोशल नेटवर्किंग साइट में सबसे अधिक फेसबुक पर ही सक्रिय हूं। मेरा ट्वीटर, इंस्टाग्राम पर भी अकाउंट है, लेकिन ये दोनों सोशल साइट में सैलिब्रिटी के लिए मानता हूं।इसलिए इस पर जाता ही नही हूं।सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इंस्टग्राम और फेसबुक 5 मार्च को अचानक डाउन हो गया। कई यूजर्स के अकाउंट्स अपने ही आप लॉगइन और लॉगआउट हो रहे थे। ऐसा दरअसल, इंस्टग्राम और फेसबुक को एक आउटेज का सामना करने से हुआ इसी वजह से पासवर्ड स्वीकार नहीं किया जा रहा था। ये सभी प्रॉब्लम सोशल मिडिया पर अत्यधिक निर्भरता और खुद को अनसोशल करने के कारण हुआ।ट्वीटर अब गाली गलौच का केंद्र बन चूका है वहां बने रहने के लिए अभद्रता या गाली गलौज सहने की सहनशीलता चाहिए और उसी लहजे में प्रतिउत्तर भी देना आना चाहिए। सोशल मिडिया पर हर मिनट लॉगिन होना आजकल की पीढ़ी की आदत बन चूकी है।इसलिए इस पर हर दो मिनट बाद तांक-झांक अनवरत चलती रहती है और इसका एक तरह से सभी आदि हो चूके है। इसी आदीपन के बीच कल रात मोबाइल पर लिख कर आया की सीजन एक्सपायर हो रहा है, और कितनो के सोच एक्सपायर हो गए। कल रात लॉगआउट करने पर जब फेसबुक पासवर्ड मांगने लगा तो उसके पासवर्ड मांगते ही कई लोग रुंआंसे हो गए। क्योंकी पासवर्ड वो तो क्या उनकी हार्ड डिस्क वाली दिमाग़ भी याद नहीं दिला पाती क्योंकि यह याद नहीं है, ना कहीं लिख कर रखा गया है और ना ही कोई तकनीक इसको जुगाड़ने की आती क्यूंकि पाससवर्ड चेंज वाला ऑप्शन का ईमेल भू सत्यनाश हो चूका था
अब यदि नया अकाउंट बनाते तो पुरानी जमी-जमाई गृहस्थी (पुराने सभी अनन्य मित्र) से हाथ धोना पड़ता, इसलिए मन में रात भर बहुत उथल-पुथल रही सुबह होते ही सब फिर फेसबुकवा पर गए तब जान में जान आई। कहने का तात्पर्य, आशय, मतलब, अर्थ यही है की सोसल मिडिया हमारे लिए किसी प्राणवायु से कम नहीं है। ये शोले के गब्बर सिंह के बसंती को बोले गए उस डायलॉग की तरह है की बसंती जब तक तेरे पैर चलेंगे, इसकी सांस चलेंगी। मतलब जब तक सोसल मिडिया चलेगा, हम भी ख़ुश होकर चलेंगे। ऐसी भी क्या दीवानगी जो इस फेसबुकवा ने सबको लगा दी है। क्या आप भी इसके इतने ही आदी हैं ?