गमजदा आस्थावानो ने की सीना जनी और पढ़ा नोहा
जौनपुर। शहर के अहमद खां मंडी में मोहर्रम के महीने में निकलने वाले पारंपरिक जुलूस में आस्थावानो का सैलाब उमड़ पड़ा, उक्त जुलूस जव्वाद अली मरहूम के बेनर तले मोहम्मद शफ़ी (सुज्जन) के घर से उठता है और शिया मस्जिद के चौक से होता हुआ जामा मस्जिद के बगल गली से होता हुआ मुख्य मार्ग बाजार में पहुंचा जहा लोगो ने नोहा पढ़ना शुरू किया तो सुनने वालो की आंखों से आंसू के सैलाब उमड़ पड़े। नौहा पढ़ने वालो में मुख्य रूप से गुलफाम हैदर, मौजीज अब्बास, नजमी अब्बास, सलमान हैदर, शकील हैदर शामिल रहे। उक्त क्षेत्र में
मुहर्रम के महीने की नौ तारीख को शिया मुस्लिम समुदाय के लोग गमजदा होकर शोक मनाते हैं। इस दिन शिया मुसलमान लोग हुसैन की शहादत को याद करते हैं और उनके प्रति अपना शोक व्यक्त करते हैं। और ताजिये का जुलूस निकाला जाता है। यह ताजिये का जुलूस मुख्य मार्ग से आगे बढ़ते हुए नूर मस्जिद वाली गली में पहुंचा जहा डॉ रज़ी अहमद, खालिद कमाल आदि ने जुलूस में आए हुए लोगो को सबील पिलाई। जुलूस अपने कदीमी रास्तों से होता हुआ शिया मस्जिद पर आकर समाप्त हो गया। इमाम हुसैन की कब्र के प्रतीक के रूप में बनाई जाने वाली बड़ी-बड़ी कलाकृतियों को ताजिया कहा जाता है जिसको लेकर लोग चल रहे थे। 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत मुहम्मद (सल्ल.) के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था। कर्बला की घटना अपने आप में बड़ी विभत्स और निंदनीय है।
जुलूस में मुख्य रूप से मोहम्मद शफी सुज्जन, गुलाम अब्बास सलीम, अनवर हुसैन छब्बन,राजू अब्बास, हेलाल हैदर, मुशर्रफ हुसैन रजा, मेहंदी, इंतजार हैदर, अफजल, असलम अब्बास, मेराज हैदर, जमाल हैदर, रियाजुल हक, आले रसूल खान, आतीफ खां, अतुल श्रीवास्तव आदि सहित सैकड़ों लोग मौजूद रहे।