जौनपुर। उच्च शिक्षा पर खतरे और अन्यायपूर्ण भेदभाव के खिलाफ अधिवक्ताओं ने अतिरिक्त एसडीएम को ज्ञापन सौपा है। उनका कथन है कि विश्वविद्यालयों को किसी भी एक विचारधारा, सरकार, जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र का न होकर सभी का होना होता है। विश्वविद्यालय का ‘विश्व’ इन्हें वैश्विक ज्ञान, विज्ञान, अनुसंधान, विमर्श, संगद का केंद्र बनाता है। भारत के संविधान की प्रस्तावना के मूल न्याय, समता, बंधुता के मूल्यों पर ही उच्च शिक्षा का वजूद होना चाहिए। मगर मौजूदा दौर में उच्च शिक्षा के केंद्र इन विश्वविद्यालयों पर कई तरह के खतरे आन पड़े हैं। समाज के प्रबुद्ध वर्ग बंधुओं ने इन खतरों की तरफ ध्यान आकृष्ट कराते हुए निम्नलिखित माँग की हैं।
पहली मांग यह है कि देश भर के विश्वविद्यालयों पर एक विचारधारा को थोपा जा रहा है, जिससे उच्च शिक्षा का स्वायत्त, निष्पक्ष, तटस्थ, समावेशी व संविधान पर आधारित चरित्र नष्ट हो रहा है। दूसरी मांग यह है कि विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों की नियुक्ति प्रक्रिया बेहद भेदभावकारी, अपारदर्शी और भ्रष्टाचारी है। जिसके चलते वास्तविक प्रतिभा का हनन हो रहा।
तीसरी मांग यह है कि केंद्रीय विश्वविद्यालयों के भीतर हर स्तर पर जातिगत, लैंगिक और अन्य कई किस्म के शोषण व भेदभाव बदस्तूर जारी हैं, जिसके चलते देश भर के विश्वविद्यालयों से वंचित शोषित जमात के विद्यार्थियों, शोधार्थियों और प्रोफेसरों के साथ अनवरत अन्याय हो रहा है। चौथी मांग यह है कि सरकार व एक विचारधारा विशेष के प्रभाव में पाठ्यक्रम बदले जा रहे हैं, पीएचडी एडमिशन तक में घोर धांधली की जा रही है, विद्यार्थियों की सीटों व फेलोशिप में कटौती हो रही, फीस बेतहाशा बढ़ाई जा रही है, उच्च शिक्षा का क्रमिक निजीकरण किया जा रहा है। मौके पर ऋषि यादव, बरसातु राम सरोज, विनय कुमार यादव, अखिलेख यादव, प्रदीप कुमार यादव, अरुण कुमार यादव आदि लोग मौजुद रहें।