होलिका दहन पर पर्यावरण का जरूर रखे खयाल, होलिका जालायें – पर्यावरण बचाएं

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पंकज सीबी मिश्रा/पूर्वांचल लाईफ

जौनपुर : आजकल छोटी – छोटी बात को लेकर लोग जल्दी प्रतिक्रिया उल्टी कर देते है, सभी रीति रीवाज , तीज त्योहार और पर्व हम सबके लिए महत्वपूर्ण है। त्योहार उसी जोशो खरोस और उल्लास से मनाया जाना चाहिए जैसे पूर्व में मनाया जाता रहा है। पहले प्राकृतिक संसाधन भरपूर हुआ करते थे तो त्योहारों पर उन संसाधनों का जमकर प्रयोग, उपभोग भी किया जाता रहा है। परंपराएं नहीं बदली, मान्यताएं स्थिर है और उनमें लगातार नए नए स्कीम और आइडिया, अपितु आस्था बढ़ती ही रही है किंतु संसाधनों का स्वरूप और प्राकृतिक परिस्थिति और गुणवत्ता घटी है तथा मानसिकता विकृत हो चुकी है। उक्त बातें जनपद के पत्रकार और जाने माने मीडिया विश्लेषक पंकज सीबी मिश्रा ने आज के संदर्भ में करते हुए कहा कि प्राकृतिक संपदा कम हो रही, प्रदूषण ने बुरी तरह हवाओं की शुद्धता बिगाड़ रखा है। हर घर मे सांस, खासी, जोड़ो के दर्द के मरीज पड़े हुए है। सरकार लगातार प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर आम नागरिकों का दोहन कर रही। वैसे भी किसी चीज का दुरुपयोग अथवा किसी चीज से होने वाला प्रत्यक्ष हानि का संज्ञान हमे खुद को लेना है। मरीजों का खयाल आते ही तत्काल हमे जागरूक हो जाना चाहिए। इस वर्ष गुरुवार, 13 मार्च को फाल्गुन पूर्णिमा है, इस तिथि पर रात में होलिका दहन किया जाता है। ये पर्व रात्रि जागरण का महापर्व है, यानी इस पर्व पर रात में जागरण किया जाता है और अपने इष्टदेव की विशेष पूजा की जाती है। होलिका दहन की रात भक्त मंत्र जप करते हैं। माना जाता है कि इस रात में की गई पूजा-पाठ जल्दी सिद्ध होती है। हालांकि हिंदू त्योहारों पर मिलने वाला नैतिकता का ज्ञान हम सबको बहुत चुभता है क्युकी यह त्योहारें सनातनी परंपरा का अभिन्न अंग है किंतु एक बात जो हम सबको सुननी और समझनी पड़ेगी वह यह कि प्रकृति हम सबकी अपनी जीवनदायनी है, उसी के साए में हम सब अपना पूरा जीवन गुजारेंगे ऐसे में उसकी सुरक्षा हम सबका मूल कर्तव्य बन जाता है। होलिका दहन कीजिए और खुले स्थान पर पूर्ण सुरक्षा और सतर्कता से कीजिए किंतु याद रहे एक साथ यदि एक जिले में पचास हजार या एक लाख से ज्यादा होलिका की वेदी का दहन होगा तो उससे निकलने वाला धुआं प्रकृति को अब कितना नुकसान पहुंचाएगा इसका आकंलन और आत्मचिंतन भी कीजिए और तब जब ऐसा होता रहा तब की प्रकृति और अब का वातावरण दोनो की तुलना कीजिए, प्रदूषण को भी ध्यान में रखिए। हम होलिका को जलाएं अति उत्साह से त्योहार मनाए किंतु जब भी होलिका की वेदी बनाए तो कोशिश करें की आस – पास के लोगो को आमंत्रित करें ताकि दो किमी क्षेत्र में कम से कम होलिका की वेदी बने अथवा होलिका में ऐसे पदार्थो को जलाए जिनसे कम कार्बन उत्सर्जित होता हो। आप जब घर में हवन करते हैं तो उसमें कूड़े-कचरे की आहुति देते हैं? नहीं न…! फिर वैदिक युग की यज्ञ परंपरा से जुड़े होलिका दहन के लिए चौराहे-चौराहे कूड़ा-करकट और प्लास्टिक क्यों जुटा रहे हैं। होलिका में जलने वाली अग्नि यज्ञवेदिका में जलने वाली अग्नि का ही प्रतीक है। होलिका दहन के बाद जो राख हमें मिलती है, वह सामान्य नहीं होती है। होली की राख को बहुत ही पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि होली की राख को पानी में मिलाकर स्नान करने से कुंडली के ग्रह दोषों का असर कम होता है। होली की राख का इस्तेमाल शिव पूजा में भस्म के रूप में किया जा सकता है। शिवलिंग पर होली राख से भस्म चढ़ा सकते हैं। माना जाता है कि होलिका दहन करना बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप की बहन होलिका अग्नि में हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद को लेकर बैठ गई थी। होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह कभी नहीं जलेगी परंतु भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया और होलिका जलकर भस्म हो गई। होलिका में घी, तिल अनाज गुड़ और अन्य द्रव्य चढ़ाने की परंपरा रही है जिससे होलिका की अग्नि हवा को शुद्ध करती थी पर आज उस परंपरा को हम अपने अज्ञानता से खतम करते जा रहे है।

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