हरिप्रबोधनीएकादशी ब्रत या देव उठनी व्रत पर डॉ दिलीप कुमार सिंह

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जौनपुर/पूर्वांचल लाइफ

हरि प्रबोधिनी देव उठनी देव जागरण या जुठवन का महापर्व और व्रत प्रत्येक वर्ष में कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है यह तिथि इस वर्ष 12 नवंबर 2024 ईस्वी दिन मंगलवार को पड़ रही है!आज के दिन ही सब लोग नए गन्ना की फसल की पूजा करते हैं गन्ना फसल की पूजा दिन में 12:30 अपराह्न तक भद्रा है उसके बाद ही करना श्रेयस्कर रहेगा! एकादशी व्रत की पारणा के साथ ही संत महात्माओं का चातुर्मास व्रत, तथा हरि शयन समाप्त हो जाएगा भगवान विष्णु क्षीर सागर में जाग जाएंगे और अब एकादशी के बाद से ही जनमानस में विवाह जैसे शुभ मंगल कार्यों की शुरुआत हो जाएगी! आज के ही दिन तुलसी विवाह का भी आयोजन होता है। कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु के जागरण के बाद सारे शुभ और मांगलिक कार्य शुरू हो जाते हैं इस दिन सुबह स्नान करके लोग व्रत रहते हैं और अगले दिन व्रत का पारण करते हैं इसमें मांस मछली मदिरा नशा तेल मसाले और तामसिक भोजन पूरी तरह से वर्जित है।

इस दिन गन्ना सिंघाड़ा पीले मिठाई और पीले फूल तथा पीले वस्त्र से भगवान श्री हरि विष्णु की पूजा होती है जिसके लिए गन्ने का मंडप बनाया जाता है और अगले दिन गन्ना चूसने की परंपरा है। सारे शुभ और मांगलिक कार्य इसी दिन से प्रारंभ हो जाते हैं। इस बारे में एक कथा है कि जालंधर नाम का एक असुर भगवान शिव और विष्णु तथा अन्य देवी देवताओं से वरदान पाकर परम शक्तिशाली हो गया था और उसका कोई कुछ बिगाड़ नहीं पा रहा था क्योंकि उसकी पत्नी वृंदा परम सती थी जब तक वृंदा का शील हरण नहीं होता तब तक जालंधर अजेय था इसके लिए भगवान श्री विष्णु ने जालंधर का रूप बनाया और वृंदा से छल कपट किया जब वृंदा को वास्तविकता मालूम हुई तो उसने भगवान श्री हरि विष्णु को काला पत्थर अर्थात शालिग्राम होने का श्राप दे दिया बाद में वह अपने श्राप को वापस ले लिया और जालंधर के साथ सती हो गई लेकिन उसके श्राप को सच करने के लिए भगवान श्री हरि विष्णु ने काले पत्थर के रूप में जन्म लेना स्वीकार किया और तुलसी जहां सती हुई थी।

वहीं से रात में से तुलसी का पौधा निकला तब से हर वर्ष कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है।

धार्मिक आध्यात्मिक कथा के अलावा इसका वैज्ञानिक महत्व है कि आषाढ़ शुक्ल एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक वर्षा का मौसम प्राचीन काल में भारत में रहता था जिसके कारण नदी नाले पानी से भरे रहते थे रास्ते पूरी तरह बंद हो जाते थे और उस समय घने जंगल चारों ओर घास फूस खतरनाक जीव जंतु जीवाणु विषाणु कीटाणु रोगाणु होने के कारण शुभ और मांगलिक कार्य संभव नहीं थे लेकिन कार्तिक से धीरे-धीरे जल रास्ते से हट जाता था। खतरनाक जीव जंतु वापस चले जाते थेइसलिए 4 महीने लोग अपने घर जाकर चिंतन मनन करते हुए चातुर्मास व्रत रखकर देवी देवताओं की कथाएं सुनते हैं और धार्मिक ग्रंथ पढ़ते रहते थे आज परिस्थितियों बदल चुकी हैं इसके अलावा इस समय तक गन्ने का रस पूरी तरह से गाढ़ा हो जाता है इसलिए गणना एकादशी के बाद से ही पेरकर गुड़ बनाया जाता है।

यह बात हर चीजों पर लागू होती है इसीलिए धर्म और अध्यात्म तथा स्वास्थ्य का उदाहरण देते हुए सावन और कुवार महीने में मछलियां खाने से मना किया जाता है सावन में मछलियों का प्रजनन होता है और कुवार में मछलियां विषैली हो जाती हैं इस तरह भारत के व्रत पर्व अनुष्ठान यज्ञ हवन पूरी तरह से वैज्ञानिक प्रकृति और पर्यावरण के अनुकूल हैं:डॉ दिलीप कुमारसिंह

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