पंकज सीबी मिश्रा, राजनीतिक विश्लेषक एवं पत्रकार उत्तर प्रदेश
आदिवासी बाहुल्य राज्यों में विशेष राजनीतिक संगठन और एक दल के फर्जी सैनिक और उनके अराजकता फैलाने वाले समर्थक खुले रूप से बंद के नाम पर आतंक फैला रहें। खुली चुनौती देकर भारत बंद संबंधी धमकी भरे पोस्टर लगा रहें और केंद्र सरकार एवं सुप्रीम कोर्ट मौन है यह शर्मनाक है। पहले तो सरकार से यह गुजारिश की ऐसे फर्जी राजनीतिक संगठनों जिनमें सेना शब्द जुड़ा है उन पर तत्काल रासुका लगा कर प्रतिबंधित करे और उनके चीफ को गिरफ्तार कर उसकी सांसदी बर्खास्त करें। तथा इसे समर्थित करने वाले नेताओं की राजनीति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका डाले ताकि आने वाले समय में देश को आंतरिल विद्रोह से बचाया जा सके। सरकारी नौकरी और आर्थिक आरक्षण सबको मिलनी चाहिए क्योंकि यह देश सबका है। पर निजी आरक्षण के लिए एक आतंकवादी का रूप अख्तियार कर लेना और सरकार को चुनौती देने लगना उचित नहीं है और आरक्षण पर कराया गया 21 अगस्त का ‘भारत बंद’ एक खास तरह का डरावना संकेत है हालांकि इस प्रकार के बंद का पूरे देश में असर अब नहीं पड़ता पर पश्चिमी राज्यों में इस बंद से जुड़े लोग तोड़फोड़ और अराजकता फैलाने की बाते करते देखें गए । यह संकेत देशहित में बिलकुल नहीं है। ऐसे संकेत आगे चलकर घातक और यह आरक्षण से संबंधित आंदोलन और बंद देश के लिए विध्वंसक साबित होगा।इस भारत बंद के बारे में इसके आयोजकों की ओर से जारी आदेशात्मक अधिसूचना में आम लोगों और सरकारी तंत्र को चेतावनी देते हुए कहा गया है कि ‘भीम सैनिक’ देश भर में इस बंद को लागू करेंगे और यह देखेंगे कि सबकुछ पूरी तरह बंद है या नहीं और यह सुनिश्चित करेंगे कि देश में आज सबकुछ पूरी तरह से बंद रहे। आखिर यह कहाँ का संविधान और कैसा लोकतंत्र है ! यदि इसी तरह सवर्ण भी सड़क पर उतर आए तो इन बंद कराने वाले फर्जी संगठनों और समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों को छिपने की भी जगह नहीं मिलेगी पर क्या यह लोकतान्त्रिक देशो के लिए सही साबित होगा ! आम जनता को सोचना होगा और ऐसे बंद का विरोध करना होगा। फर्जी संगठन की ओर से हिदायत दी गई कि वे बंद के दौरान अपने घरों से न निकलें पर यह तानाशाही क्या जायज है ? उनके अनुसार कोई इस बंद का विरोध न करे और पुलिस इस बंद को लागू करने में किसी भी सूरत में बाधक बनने की कोई कोशिश न करे। आज का यह भारत बंद देश की पूरी न्याय व्यवस्था यानी माननीय सुप्रीम कोर्ट को भी खुली चुनौती दे रहा है। आज के इस बंद में बच्चों के दूध, सब्जियों और दवा दुकानों तक को बंद करा दिया गया है। आयोजकों की ओर से जारी अधिसूचना में लिखा है कि आम जनता को आज घरों से बाहर निकलने की इजाजत नहीं है। वे अपने घरों में ही रहें। सिर्फ ‘भीम सैनिक’ ही घरों से बाहर निकलेंगे जो सबकुछ बंद कराएंगे। चेतावनी में कहा गया है कि आज ‘पूरा भारत नीला’ होगा और कोई इसमें व्यवधान उत्पन्न न करे। यह क्या है? इसे तो आरक्षण का आतंकवाद ही कहा जाएगा। सोशल मिडिया पर फैलाये गए अधिसूचना में जिन भीम सैनिकों की चर्चा की गई है वे आने वाले दिनों में देश में एक समानांतर सेना का रूप ले लेंगे या फिर एक आतंकवादी संगठन बन जाएंगे। तथाकथित अधिसूचना को देखते हुए फर्जी संगठन के आतंकवादी संगठन बनने की शुरुआत तो लगता है अभी से और आज से ही हो गई है। उधर सरकार कितनी लाचार है वह भी डरा रहा क्युकि पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की स्थिति में नहीं मोदी सरकार। पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन के कयास लगाने वाले लगा रहे हैं। क्यों कि पश्चिम बंगाल के राज्यपाल दिल्ली पहुंचे हैं। मेरा मानना है कि अगर अराजकता का फन कुचलना होता तो कब का लगा चुके होते राष्ट्रपति शासन पर असल समस्या वोट बैंक की है। राष्ट्रपति शासन लगने के बाद पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी लेफ्ट की मदद से जो आग लगाएंगी, उसे सेना, केंद्रीय पुलिस बल सब के सब मिल कर बुझा नहीं पाएंगे। न दंगे संभाल पाएंगे। ममता बनर्जी ने बांग्लादेशी और रोहिंगिया को दंगा प्रशिक्षित कर दिया है। भारत – पाकिस्तान विभाजन के समय में भी पश्चिम बंगाल जिस तरह जला था, लोग भूले नहीं हैं। आज भी पश्चिम बंगाल के लोगों को याद है डायरेक्ट एक्शन, ज़ब जिन्ना का फरमान था कि डायरेक्ट एक्शन मतलब हिंदुओं को देखते ही मारो। बांग्लादेश में जिस तरह हिंदुओं पर हमले अभी भी जारी हैं, मंदिरों और स्त्रियों पर लूट – पाट, अत्याचार और बलात्कार अभी भी थमा नहीं है। सोचिए कि बांग्लादेश में आंदोलन आरक्षण को ले कर हो रहा था। पर परिणति क्या हुई ? हिंदू स्त्रियों के साथ बलात्कार , सामूहिक बलात्कार। मंदिरों की तोड़ – फोड़। हिंदुओं के घर दुकान लूटे गए। जलाए गए। पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से आए लोग ज़्यादा उग्र और हिंसक हैं। जिन की लगाम ममता बनर्जी और लेफ्ट के हाथ है। समूचे देश में खड़े मिनी पाकिस्तान भी इन के समर्थन में खुल कर आ जाएंगे। नहीं पश्चिम बंगाल, पंजाब, केरल और दिल्ली चारो ही प्रदेश राष्ट्रपति शासन मांगते हैं। पश्चिम बंगाल इस में नंबर एक पर है। बीते कई सालों से पश्चिम बंगाल में क़ानून व्यवस्था ठेंगे पर है। देखना दिलचस्प होगा कि स्वत: संज्ञान लेने वाला सुप्रीम कोर्ट पश्चिम बंगाल पर क्या रुख़ अख़्तियार करता है कल। क्यों कि पश्चिम बंगाल तो मुस्लिम सांप्रदायिकता के एटम बम पर बैठा हुआ है। पश्चिम बंगाल में ज़्यादातर विरोध करने वाले हिंदुओं का नरसंहार हो चुका है। शेष भाग चुके मैदान ख़ाली है । पश्चिम बंगाल में मैदान ख़ाली नहीं है। बहुत से हिंदू उपस्थित हैं। नरसंहार देखने के लिए। मोदी इसी नरसंहार से बचाना चाहते हैं। इसी लिए डरपोक बने बैठे हैं। सेना या केंद्रीय पुलिस नरसंहार नहीं न कर सकती , इस लिए , इस बिंदु पर कमज़ोर है। संदेशखाली में स्त्रियों के साथ शाहजहां शेख़ ने क्या – क्या नहीं किया। डाक्टर बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार और हत्या पर भी चुप हैं। सब शांत हैं। और इस भस्मासुर को नचाएंगे। नचाएंगे तो ज़रूर। अब बस यही एक उम्मीद है। बाक़ी लोकतंत्र , अदालत और संविधान केवल सवर्णो के लिए दंडात्मक रहें है।