मुद्दा “इसमें आदत लग सकती है” कृपया अपने रिस्क पर खेलें

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पूर्वांचल लाईफ/पंकज कुमार मिश्रा

जौनपुर ! इसमें आदत लग सकती है कृपया अपने रिस्क पर खेलें। जी हाँ यह टैग लाईन जनपद के युवाओं को जुए की लत लगा रहीं। अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट नें भ्रामक विज्ञापनों को लेकर बाबा रामदेव को कटघरे में खड़ा किया था और उनसे बकायादा माफीनामा छपवाया, जबकि क्रिकेट के खेल में इन दिनों कुछ प्लेइंग इलेवन गेम कम्पनियाँ और “सटोरिए पॉइंट्स” देकर युवाओं को भ्रम में डालकर रुपये पैसे एठ रहें। असल क्रिकेट का भविष्य खत्म होनें के बाद आईपील की लोकप्रियता नें नए बिजनेस को जन्म दिया जिसके बाद गांव देहात के लड़के सट्टा बाजार में सक्रिय है और एक करोड़ जीतने के चक्कर में हजारों नृत्य दिन गंवा रहें। आखिरकार इन बेरोजगार युवाओं को जुए की लत लगा कर किसका हित हो रहा! क्या सुप्रीम कोर्ट ऐसे मामलों पर इन जुए वाली कम्पनियों पर टिप्पणी कर पायेगी अथवा इनका बिजनेस बंद करा पायेगी यह बड़ा प्रश्न है।

क्योंकि जितना पैसा आईपीएल ट्वेंटी में है उतना असल क्रिकेट में नहीं है और इसी का लाभ उठा कर प्लेइंग इलेवन चुनने से लेकर जीत हार तक सट्टा लग रहा। सट्टा खिलाने वालों के पास तीन तीन फरारी गाडियां हैं, खुद का प्लेन भी, आईपीएल जैसे सट्टे के खेल को आरंभ करने का क्रेडिट इन्हीं को जाता है, यहां जुयें का प्रचार होता है, अंत में बोल देते हैं, आदत लग सकती है, अपनी जिम्मेदारी से खेलें। भारत का युवा इसमें लिप्त हो चुका है, वो ड्रीम इलेवन पर टीम बनाता है, बाप दादा के मेहनत की कमाई मिट्टी में मिलाने पर तुला है, बड़े सट्टेबाज इन्हें उल्लू का पट्टा बनाकर ठगते हैं और मिलार्ड चुप है। मिलार्ड को केवल बाबा रामदेव के उत्पादों से एलर्जी है।

फिलहाल ललित मोदी लंडन में हैं, बड़ा आलीशान महल अच्छी मोहतरमाये, अच्छी गाडियां, आला दर्जे का रहन सहन, सब कुछ है। ये जो आईपीएल है ना, ये क्रिकेट को तो खत्म ही कर देगा, साथ में भारत के मध्यय वर्ग और निम्न वर्ग को भी खत्म कर देगा। सट्टा का आदी बना देगा, इनके पास पैसे नहीं होंगे तो ये लोग जीवन में जरूरी वस्तुएं भी इधर-उधर करेंगे। खुद आईपीएल का बड़ा प्रेमी रहा हूं, खूब देखता भी हूँ। लेकिन जब इसकी हकीकत समझा तो थोड़ी दूरी बना लिया। एक बार एक लड़के के दस हजार चले गए तब उसने माँ के गहने चुरा कर बेच दिया। बाप नें पीटा तो कान पकड़ लिया, पर अब फिर उसी काम में लगा है और कहीं भी उसका मन नहीं लगता है। लोग आईपील देखना झेलते है, लेकिन ओवर खत्म होने के बीच में आने वाली एड में जो सट्टा खेलने के नाम पर चरस परोसी जाती है,उसे नहीं झेल पाते। ये गेम आम लोगों का गेम नहीं, ये असल में जुवाडियों और सटोरीयों का गेम है। युवा लोग जितना जल्दी इस गेम से दूरी बना लेंगे, उनके लिए उतना ही बेहतर रहेगा, आपको समझा सकूं उतना ज्ञान नहीं,फिर भी लिखें दे रहा हूं, वक्त पर काम आयेगा। असली क्रिकेट खेलिए देश का नाम रोशन कीजिये पर आईपील देख किसी के कहने पर सट्टा या जुआ नहीं खेलिए।

अपना प्लेइंग इलेवन नहीं बनाइये और ना ही पांच रूपये से लेकर चालीस रूपये तक का ऑनलाइन पेमेंट कीजिए, क्यूंकि आपके इन पैसो से कई कम्पनिया रोज अरबों कमा रहीं और युवा पैसे गंवा कर डिप्रेशन के शिकार हो रहें। जो चिंतनीय विषय है?

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